
देहरादून। निर्वाचन आयोग द्वारा सायं 7 बजे जारी विज्ञप्ति के अनुसार उत्तराखंड में आज संपन्न लोक सभा चुनाव के लिए 53.56 प्रतिशत मतदान हुआ। यह मत प्रतिशत 2019 के चुनाव से कम है, जबकि चुनाव मशीनरी ने इस बार मतदान प्रतिशत बढाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। सन 2019 में राज्य का मतदान प्रतिशत 58.01 प्रतिशत था। मतदान के असली आंकड़े ईवीएम मशीनों के लौटने के बाद ही जारी होंगे। सभी मतदान पार्टियां सोमवार तक अपने-अपने मुख्यालयों पर लौट जाएंगी।आयोग द्वारा जारी मतदान के अस्थायी आंकड़ों से प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की पेशानी में बल पड़ने के साथ ही बैचेनी बढ़ गई है। इस बार भारत निर्वाचन आयोग की ओर से सरकारी मशीनरी द्वारा पूरी ताकत और संसाधन झोकने के बावजूद मतदान प्रतिशत के गिरने की संभावना शासन प्रशासन के लिए लिए भी चिंता का सबब बन गया है। जानकारों के अनुसार मत प्रतिशत गिरने का एक प्रमुख कारण शादियों का सीजन भी रहा है। आजकल फसल काटने का सीजन होना भी एक कारण गिनाया जा सकता है। कुछ स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा चुनाव बहिष्कार भी काम मतदान का कारण रहा और इसके लिए पूरी तरह शासन प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार माना जा सकता है। फ़िलहाल चमोली गढ़वाल में कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र के सकंड गांव और थराली के देवराड़ा गावों द्वारा मतदान बहिष्कार की सूचना है। इनके अलावा भी कई अन्य गावों के उपेक्षित ग्रामीणों द्वारा एक आरसे से मतदान बहिष्कार की चेतावनियां दी जा रही थी।दरअसल, यह विकास के दावों के खोखलेपन का ही सबूत है। बहिष्कार के लिए जनसरोकारों के प्रति उदासीनता और सत्ताधारियों का ओवर कॉन्फिडेंस तथा अहंकार भी एक कारण रहा है। सत्ता में बैठे लोगों को ये अहंकार रहा कि उनको सत्ता में बनाये रखना जनता की महत्ती जिम्मेदारी है चाहे कोई सरकार से खुश हो या न हो। चाहे जनता की सड़क, बिजली, पानी, स्कूल जैसी मूलभूत समस्याओं का समाधान हो या न हो। निर्वाचन आयोग की मशीनरी भी ग्रामीणों की पुकारें सुनने के बजाय शहरों में मतदान के प्रचार की औपचारिकता करती रही। इस बार का खामोश चुनाव भी कम मतदान का कारण हो सकता है।
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